क्योंथल क्षेत्र में महाशिवरात्रि का पर्व बड़े पारंपरिक ढंग के साथ मनाया गया

हिमवंती मीडिया/शिमला 

महाशिवरात्रि का पावन पर्व क्योंथल क्षेत्र में बड़े पारंपरिक ढंग के साथ मनाया गया। इस पर्व को विशेषकर अपर शिमला के कुछ क्षेत्रों में  वर्ष का सबसे बड़ा त्यौहार माना जाता है। अन्य क्षेत्रों में मनाए जाने वाले शिवरात्रि पर्व की तुलना में शिमला जिला में इसे भिन्न तरीके से मनाते हैं। जिसका वर्ष भर से लोगों को बेसब्री से  इंतजार रहता है। महाशिवरात्रि पर्व पर जहां शिवालयों में लोगों द्वारा शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है। वहीं पर क्योंथल अथावा अपर शिमला क्षेत्र में महाशिवरात्रि के पर्व पर लोगों द्वारा अपने घरों में शिव पार्वति व गणेश की  पूजा करने की अलग परंपरा पूजा के लिए घर को बड़े अच्छे तरीके से सजाया जाता है। कई गांव में लोगों द्वारा घर की एक दिवार पर शिव व पार्वति के विवाह के चित्र बनाए जाते हैं। मंडप को बहुत अच्छे ढंग से सजाया जाता है। मंडल पर आटे के रोट के साथ नंदी बैल, बकरे व भेड़ू बनाकर सजाए जाते हैं। मंडप पर सबसे आकर्षित करने वाला चंदुआ होता है जिसे शिव-पार्वति विवाह के लिए पाजा, बिल्वपत्र व भांग घतूरा से तैयार किया जाता है।

इसके अतिरिक्त मंडप पर शिवरात्रि के तैयार किए गए विशेष पकवान जिनमें कचौरी, उड़द के सनशे, दाल चावल, सिडडू, पूड़े, फल इत्यादि को भगवान के समक्ष परोसे जाते हैं। रात्रि को परिवार के सदस्यों द्वारा एक कड़छी में आग लेकर उसमें घी के साथ पाजा व बिल्वपत्र डालकर विशेष पूजा की जाती। रात्रि को कई घरों में जागरण भी किया जाता  है। उसके उपरांत परिवार के सभी सदस्य बैठकर भोजन करते हैं। धरेच के शिव राम शर्मा ने बताया कि  शिवरात्रि अपर शिमला में सबसे बड़े त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। इस मौके पर शिव-पार्वति के विवाह की रस्मंे आदीकाल से निभाई जाती है। बताया कि शिवरात्रि के अगले दिन पक्षियों के जागने से पहले प्रातः के अंधेरे में चंदुआ को घर के बाहर टांग दिया जाता है। शिवरात्रि पर्व के अगले दिन विवाहित बहनों व बेटियों को विशेष भोजन अर्थात कचौरी ले जाने की परंपरा बदलते परिवेश में आज भी कायम है जिसका बहन बेटियां कई दिनों से बेसब्री से इंतजार रहता है।

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