सत्तू गिरिपार क्षेत्र का एक विशेष पारंपरिक व्यंजन एवं पूर्ण आहार माना जाता है । गर्मियों के मौसम में मक्की के सत्तू को लस्सी व चटनी के साथ खाने का अलग ही आन्नद आता है । बता दें कि सत्तू को एक प्रकार का पहाड़ी फास्ट फूड माना जाता है जिसका इस्तेमाल गिरिपार क्षेत्र में विशेषकर गर्मियों के मौसम में किया जाता है । सत्तू को मक्की से तैयार किए जाते हैं। सत्तू दो प्रकार से बनाए जाते है । कुछ किसान कच्ची मक्की को लाकर उबालते हैं उसके उपरांत सूखाकर घराट अथवा वर्तमान चक्की में पिसाते हैं । मक्की को उबालकर बनाए गए सत्तू का स्वाद मीठा होता है । जबकि दूसरी प्रकार के सत्तू पक्की मक्की को भूनकर बनाए जाते है । भूनी हुई मक्की के सत्तू का प्रचलन अधिक है । ग्रामीण क्षेत्रों में सत्तू का उपयोग कालांतर से किया जा रहा है ।
राजगढ़ क्षेत्र के बुजुर्ग घणूराम, रामदयाल ने सत्तू के बारे अपने अनुभव सांझा करते हुए बताया कि हिमाचल निर्माता डॉ0 वाईएस परमार सत्तू खाने के बहुत शौकिन हुआ करते थे । जब भी वह विशेषकर गिरिपार क्षेत्र के प्रवास में आते थे तो उनके भोजन में सत्तू को शामिल करना जरूरी होता था । डॉ0 परमार कहा करते थे कि सत्तू प्रदेश की समृद्ध संस्कृति की एक पहचान है जिसे कायम रखना जरूरी है ।
वरिष्ठ नागरिक प्रीतम सिंह ठाकुर के अनुसार विशेषकर गर्मियों व बरसात के मौसम में किसान खेतीबाड़ी के कार्य में काफी व्यस्त रहते हैं । जिस कारण किसानों को दिन के भोजन बनाने का समय नहीं लग पाता है । इसलिए किसान सत्तू , लस्सी और चटनी को लेकर खेत में काम पर जाते हैं तथा दिन में भूख लगने पर सत्तू को लस्सी में मिलाकर खाते हैं । जिसके दो फायदे हैं पहला फायदा की किसानों का रोटी बनाने का समय बच जाता है दूसरा मुख्य फायदा यह है कि आयुर्वेद में सत्तू की तासीर ठंडी बताई गई है अर्थात गर्मियों में सत्तू का प्रयोग करने से शरीर में ठंडक रहती है तथा गर्मियों में होने वाली किसी प्रकार की बीमारी होने का भय नहीं रहता है । कुछ लोग सत्तू को चटनी की बजाए गुड़ अथवा शक्कर से भी खाते हैं । हालांकि कबायली क्षेत्र किन्नौर में जौ के सत्तू घर घर में बनाए जाते हैं जोकि बहुत की स्वादिष्ट एवं पौष्टिक होते हैं । जिसके लडडू बनाकर इसका सेवन कबायली क्षेत्र की मशहूर नमकीन चाय से साथ करते हैं ।
वरिष्ठ नागरिक सूरत सिंह ठाकुर का कहना है कि अतीत में जब ग्रामीण परिवेश के लोग शिमला अथवा नाहन विभिन्न कार्य से पैदल जाते थे । यात्रा के दौरान लोग सत्तू की गठरी बांधकर साथ लेकर जरूर चलते थे । जहां पर पानी मिलता था लोग उसमें सत्तू घोल कर अपना लंच अथवा डिनर करते थे । इनका कहना है कि समय के साथ-साथ ग्र्रामीण क्षेत्रों में सत्तू का प्रचलन भी कम होने लगा है । नई युवा पीढ़ी सत्तू को खाना पसंद नहीं करते हैं जबकि पुराने लोग मक्की के सत्तू को घर में बनाना अपनी शान मानते हैं ।
आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ0 विश्वबंधु जोशी के अनुसार मक्का में फाईबर प्रचुर मात्रा में पाई जाती है जिसके उपयोग से शरीर में कॉलेस्ट्रॉल स्तर को सामान्य बनने के अतिरिक्त हृदय संबधी रोगों से भी बचाव रहता है । मक्का के दैनिक जीवन में उपयोग से मनुष्य के शरीर में आयरन की कमी भी पूरी होती है।
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