आई.आई.टी. मुम्बई में अवधानकला का भव्य आयोजन, डॉ. उमामहेश्वर बने आकर्षण का केन्द्र

हिमवंती मीडिया/मुंबई

भारतीय प्राचीन काव्यपरंपरा की एक विलक्षण विधा अवधानकला का एक अनुपम कार्यक्रम आई.आई.टी. बॉम्बे में संपन्न हुआ। केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के संस्कृत अध्ययन केन्द्र तथा संस्कृत भारती कोकण प्रान्त के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित हुआ। इस कार्यक्रम में प्रसिद्ध अवधानी डॉ. उमामहेश्वर (बेंगलुरु) की प्रस्तुति ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। अवधानकला, जो विशेषतः दक्षिण भारत में विकसित हुई है, उत्तर भारत में अभी भी व्यापक पहचान की प्रतीक्षा कर रही है। इस दिशा में अनेक विद्वानों द्वारा प्रयास हो रहे हैं और डॉ. उमामहेश्वर उनमें अग्रगण्य हैं। दिल्ली, सूरत, अयोध्या, वाराणसी और नेपाल जैसे स्थानों पर वे पूर्व में अपनी प्रस्तुति दे चुके हैं। इस कला में काव्य से संबंधित आठ जटिल विभागों निषिद्धाक्षरी, समस्यापूरण, दत्तपदी, उद्दिष्टाक्षरी, काव्यवाचन, आशुकविता, अप्रस्तुतप्रसंग तथा संख्याबन्ध को अवधानी को एक साथ साधना होता है। डॉ. उमामहेश्वर ने इन सभी अंगों को सहजता से पूर्ण करते हुए दर्शकों की तालियाँ बटोरीं।

कार्यक्रम की शुरुआत उन्होंने पूर्व-रचित वर्णनात्मक पद्यों के माध्यम से की, जिसने श्रोताओं में उत्साह भर दिया। डॉ. नागेन्द्र पवन ने निषिद्धाक्षरी विभाग का संचालन किया, जबकि उनकी पत्नी डॉ. ललिता ने “भित्त्वा सद्यः शिखिमुखमहो निर्गतो नागराजः” जैसी चमत्कारी समस्या देकर समस्यापूरण विभाग में जान फूँकी। तापस खानरा (दत्तपदी), भक्ति जाधव (काव्यवाचन), और चैतन्य पडळकर (आशुकविता) ने क्रमशः अपने-अपने विभागों में सुंदर प्रस्तुतियाँ दीं। वहीं महाराष्ट्र प्रदेशीय वैदिकगण की उपाध्यक्षा श्रुति कानिटकर ने छन्दबद्ध वार्तालाप द्वारा अवधानी का ध्यान भंग कर अप्रस्तुतप्रसंग विभाग को अत्यंत रोचक बनाया। ये सभी प्रतिभागी आई.आई.टी. बॉम्बे के शोधार्थी हैं जो संस्कृत में गहरी रुचि रखते हैं — यह संस्था के लिए भी गौरव का विषय है। चन्द्रमोहन गोयल (उद्दिष्टाक्षरी) और आदित्य द्विवेदी (संख्याबन्ध) ने शास्त्रीय दक्षता के साथ अपने विभागों का कुशल संचालन किया। लगभग तीन घंटे चले इस कार्यक्रम में श्रोता विस्मय, आनंद और रचनात्मकता की त्रिवेणी में अवगाहित होते रहे। कार्यक्रम के अंत में आई.आई.टी. बॉम्बे के संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ. मल्हार कुलकर्णी ने दो पद्य रचकर अवधानी को ससम्मान अभिनंदन अर्पित किया। यह आयोजन केवल एक कला प्रदर्शन नहीं, बल्कि प्राचीन साहित्यिक विधा के पुनरुत्थान की दिशा में एक प्रेरणास्पद कदम सिद्ध हुआ। आयोजकों और सहभागियों की समर्पित सहभागिता ने इसे एक यादगार आयोजन बना दिया।

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