मुख्यमंत्री ने हल्दी खरीद के लिए पंजीकरण प्रपत्र किया जारी

हिमवंती मीडिया/शिमला


मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू ने प्रदेश के किसानों से प्राकृतिक खेती पद्धति द्वारा उगाई गई हल्दी की खरीद के लिए पंजीकरण प्रपत्र जारी किया। वित्तीय वर्ष 2025-26 के बजट में राज्य सरकार द्वारा प्राकृतिक पद्धति द्वारा उगाई गई हल्दी को 90 रुपये प्रतिकिलो के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदने का प्रावधान किया था। यह पहल न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी प्रदान करते हुए किसानों की आर्थिकी एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने के साथ ही प्रदेश में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देगी। कृषि विभाग द्वारा इस सम्बंध में किसानों का पंजीकरण किया जाएगा तथा उन्हें प्राकृतिक खेती का प्रशिक्षण भी प्रदान किया जाएगा। उन्होंने कहा कि पंजीकृत किसानों से खरीदी गई कच्ची हल्दी का स्पाइस पार्क, हमीरपुर में प्रसंस्करण किया जाएगा। प्रोसेस्ट हल्दी का विपणन ‘हिमाचल हल्दी’ के ब्रांड के नाम से किया जाएगा, जोकि इसे बाजार में अलग पहचान प्रदान करेगी और गुणवत्ता भी सुनिश्चित होगी। उन्होंने कहा कि यह पहली बार होगा कि राज्य सरकार किसानों से सीधे तौर पर कच्ची हल्दी की खरीद करेगी, जिससे कि ग्रामीण क्षेत्र की आर्थिकी को मजबूती मिलेगी और इन क्षेत्रों में रह रहे लोगों को आजीविका के अवसर भी प्राप्त होंगे।

मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार प्राकृतिक पद्धति से उगाए गए गेहूं को 60 रुपये प्रतिकिलो और मक्की को 40 रुपये प्रतिकिलो के समर्थन मूल्य पर किसान से खरीद रही है। इसके अतिरिक्त, राज्य सरकार द्वारा गत दो वर्षों में दूध के समर्थन मूल्य में भी 21 रुपये प्रति लीटर की वृद्धि की गई है। वर्तमान में गाय के दूध को 51 रुपये प्रति लीटर और भैंस के दूध को 61 रुपये प्रति लीटर के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदा जा रहा है। वर्तमान में प्रदेश में 2,042.5 हैक्टेयर क्षेत्र मेें हल्दी की खेती की जा रही है। जिससे प्रतिवर्ष लगभग 24,995 मीट्रिक टन हल्दी उत्पादन हो रहा है। हल्दी उत्पादन में प्रदेश में मुख्य रूप से हमीरपुर, कांगड़ा, बिलासपुर, सिरमौर, मंडी और सोलन जिला अग्रणी हैं। हल्दी की औषधीय महत्ता के दृष्टिगत विशेषकर कोविड-19 के उपरांत घरेलू एवं अन्तरराष्ट्रीय बाजारों में इसकी बढ़ती मांग के कारण यह किसानों के लिए आजीविका का एक प्रमुख विकल्प बन गई है। हल्दी की प्रमुख विशेषता यह है कि इसे जंगली जानवरों विशेषकर बंदर नुकसान नहीं पहुंचाते। इसकी खेती में कम श्रम की आवश्यकता होती है और कटाई के बाद इसकी शेल्फ लाइफ भी लंबी होती है। इसी कारण से यह फसल हिमाचल के किसानों की चुनौतियों के अनुरूप अत्यन्त अनुकूल है। तकनीकी शिक्षा मंत्री राजेश धर्माणी, विधायक विनोद सुल्तानपुरी, हिमाचल प्रदेश वन विकास निगम के उपाध्यक्ष केवल सिंह खाची तथा सचिव कृषि सी. पालरासू भी इस अवसर पर उपस्थित रहे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

GIPHY App Key not set. Please check settings

Back to Top

Ad Blocker Detected!

Refresh

Add to Collection

No Collections

Here you'll find all collections you've created before.

Close