हिमवंती मीडिया/लखनऊ

अलीगंज स्थित अखिल भारतीय संस्कृत परिषद् में रविवार को आयोजित एक विशेष व्याख्यान में रामायण के एक अत्यंत संवेदनशील प्रसंग सीता के अयोध्या-त्याग पर विद्वानों ने विचार साझा किए। कार्यक्रम में देशभर के संस्कृत प्रेमी विद्वान, शिक्षक और शोधार्थी बड़ी संख्या में सम्मिलित हुए। व्याख्यान में बलरामपुर के राम कुँवरी स्नातकोत्तर महाविद्यालय के पूर्व संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ. कृपाराम त्रिपाठी ने ‘राम-सीता के दांपत्य जीवन की सांस्कृतिक गहराइया’ विषय पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि सीता का अयोध्या छोड़ना कोई मजबूरी नहीं, अपितु लोकमत की मर्यादा की रक्षा हेतु लिया गया एक स्वैच्छिक और युक्तिसंगत निर्णय था।

डॉ. त्रिपाठी ने अपनी साहित्यिक कृतियाँ ‘रघुकुल कथावली’ और ‘मध्य मरामचरित’ का उल्लेख करते हुए बताया कि यह निर्वासन राजनीतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से आवश्यक था, जिससे राम की छवि ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ के रूप में स्थिर हो सके। उन्होंने भवभूति के ‘उत्तररामचरितम्’ का संदर्भ देते हुए यह भी बताया कि सीता को पृथ्वी माता की ओर से राम के साथ रहने की अनुमति प्राप्त थी, किंतु उन्होंने स्वयं लोकहित में त्याग का मार्ग चुना। इस अवसर पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रो. प्रयाग नारायण मिश्र, लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रो. रामसुमेर यादव, डॉ. अभिमन्यु सिंह, डॉ. अनिल कुमार पोरवाल, और डॉ. गौरव सिंह सहित कई प्रख्यात विद्वान उपस्थित रहे। कानपुर एवं लखनऊ के विभिन्न महाविद्यालयों से आए शिक्षकों और शोध छात्रों सहित कुल 60 से अधिक प्रतिभागियों ने कार्यक्रम में भाग लिया। कार्यक्रम संयोजकों ने बताया कि यह व्याख्यान वर्तमान सामाजिक संदर्भों में पति-पत्नी के बीच पारस्परिक समझ, त्याग और आदर्शों की प्रेरणा देता है। आयोजक मंडल के अनुसार, ऐसे विमर्शों से भारतीय संस्कृति की गहराइयों को नई पीढ़ी तक पहुँचाने में सहायता मिलती है।