हिमवंती मीडिया/शिमला
अखिल भारतीय संस्कृत विकास परिषद के राष्ट्रीय सह-अध्यक्ष सुरेश पुंज ने एक प्रेस वक्तव्य जारी करते हुए हिमाचल प्रदेश सरकार के उस निर्णय की कड़ी आलोचना की है, जिसमें राज्य के कुछ विद्यालयों में संस्कृत प्रवक्ता पदों को समाप्त कर दिया गया है। उन्होंने इसे न केवल दुर्भाग्यपूर्ण बताया, बल्कि इसे शिक्षा, संस्कृति और छात्रों के साथ घोर अन्याय की संज्ञा दी। पुंज ने कहा कि यह निर्णय नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (2020) की मूल भावना के सीधे विरोध में है, जिसमें भारतीय ज्ञान परंपरा को पुनर्जीवित करने का स्पष्ट आह्वान किया गया है। “संस्कृत केवल एक भाषा नहीं है,” उन्होंने कहा, “यह भारत की सांस्कृतिक आत्मा और वैज्ञानिक चेतना की वाहक है।
उन्होंने कहा कि जब विश्व के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थानों में संस्कृत को विज्ञान की भाषा मानते हुए उस पर शोध किया जा रहा है, तब भारत में ही उसे उपेक्षित करना बौद्धिक हीनता और नीति-निर्माताओं की आत्मविस्मृति का प्रतीक है। शून्य नामांकन का तर्क देते हुए पद समाप्त करने की सरकारी नीति पर सवाल उठाते हुए पुंज ने कहा कि “जहाँ शिक्षक नहीं होते, वहाँ छात्रों का न होना स्वाभाविक है। पहले योग्य शिक्षक नियुक्त किए जाएं, फिर नामांकन की समीक्षा की जाए। उन्होंने इसे छात्रों के शैक्षणिक अधिकारों का हनन बताया। संस्कृत के महत्व को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि यह भाषा न केवल योग, आयुर्वेद, गणित, खगोल, वास्तु, ज्योतिष जैसे शास्त्रों का आधार है, बल्कि यह मनुष्य के समग्र विकास की भाषा है। ऐसे विषय को हटाकर यदि नशामुक्ति केंद्रों की स्थापना के नाम पर बजट खर्च किया जाए, तो यह आत्मघाती नीति है। अंततः उन्होंने सरकार से मांग की कि सभी शून्य नामांकन वाले विद्यालयों की पुनः समीक्षा कराई जाए और जहां आवश्यक हो वहां संस्कृत प्रवक्ताओं की तत्काल नियुक्ति की जाए।