हिमवंती मीडिया/अमेरिका

संस्कृत एवं भाषाविज्ञान के प्रख्यात विद्वान, मिशिगन विश्वविद्यालय (यू.एस.ए.) के पूर्व प्राचार्य डॉ. माधव मुरलीधर देशपांडे को इस वर्ष का प्रतिष्ठित ‘पुरुषोत्तम’ पुरस्कार प्रदान किया गया। यह सम्मान उन्हें कै लिफोर्निया के सनीवेल नगर स्थित उलुवचारू भारतीय भोजनालय के बैंक्वेट हॉल में एक भव्य समारोह में प्रदान किया गया। कार्यक्रम का आयोजन प्रातः 11 बजे से अपराह्न 2 बजे तक हुआ। यह पुरस्कार स्वर्गीय पुरुषोत्तम नारायण गाडगीळ की स्मृति में 1985 से प्रारंभ किया गया है, जो कि रत्न एवं स्वर्ण व्यापार में प्रसिद्ध गाडगीळ परिवार की एक सांस्कृतिक परंपरा का हिस्सा है। इसका उद्देश्य संस्कृत और भारतीय परंपरा के प्रचार में योगदान देने वाले विद्वानों का सम्मान करना है। इस आयोजन की सूत्रधार श्रीमती माधुरी बापट थीं, जो स्व. पुरुषोत्तम जी की भतीजी हैं। कार्यक्रम की शुरुआत स्वागत भाषण से हुई, जिसमें श्रीमती माधुरी बापट ने गाडगीळ परिवार की परंपरा, पुरस्कार की स्थापना का उद्देश्य और डॉ. देशपांडे से उनका परिचय भाव पूर्वक साझा किया। इसके पश्चात मुख्य समारोह में डॉ. माधव देशपांडे को पुष्पमाला, मानपत्र, रजत राधाकृष्ण मूर्ति, रजत नारिकेल तथा पाँच सौ अमेरिकी डॉलर की राशि प्रदान कर सम्मानित किया गया। यह सम्मान उनके पुत्र श्री मंदार देशपांडे द्वारा प्रदान किया गया। डॉ. देशपांडे ने पुरस्कार स्वीकार करते हुए उपस्थितों को संबोधित किया और अपने गुरुजनों, विशेषकर स्वर्गीय वामन शास्त्री भागवत, डॉ. एस.डी. जोशी, प्रो. जॉर्ज कार्डोना तथा प्रो. पॉल थीम के प्रति कृतज्ञता प्रकट की। उन्होंने अपने शैक्षिक जीवन की यात्रा, संस्कृत के प्रति समर्पण और अपनी पत्नी शुभांगी के सतत सहयोग का भी उल्लेख किया।

डॉ. देशपांडे ने 1972 में पेनसिल्वेनिया विश्वविद्यालय (यू.एस.ए.) से पीएच.डी. प्राप्त कर मिशिगन विश्वविद्यालय में 45 वर्षों तक संस्कृत एवं भाषाविज्ञान का अध्यापन किया। सेवानिवृत्त होने के बाद भी वे आज डिजिटल माध्यमों से संस्कृत शिक्षण, श्लोक रचना एवं वैदिकगण संस्था में श्लोक शल्य चिकित्सक पद पर प्रतिष्ठित होकर अपनी सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। कार्यक्रम में बे-एरिया क्षेत्र के लगभग पचास विद्वान, मित्रगण एवं परिजन उपस्थित थे। सम्मान समारोह के पश्चात सहभोज का आयोजन हुआ। इस अवसर पर उपस्थित जनों ने डॉ. देशपांडे के दीर्घकालीन योगदान को सराहते हुए संस्कृत साधना की इस परंपरा को आगे बढ़ाने की आवश्यकता पर बल दिया। समारोह पूर्ण गरिमा एवं सौहार्द के साथ संपन्न हुआ।